vo shaksh

चेहरा मेरा था निगाहें उस की,
ख़ामुशी में भी वो बातें उस की

मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं,
शेर कहती हुई आँखें उस की

शोख़ लम्हों का पता देने लगीं,
तेज़ होती हुई साँसें उस की

ऐसे मौसम भी गुज़ारे हम ने,
सुबहें जब अपनी थीं शामें उस की

ध्यान में उस के ये आलम था कभी,
आँख महताब की यादें उस की

फ़ैसला मौज-ए-हवा ने लिक्खा,
आँधियाँ मेरी बहारें उस की

नीन्द इस सोच से टूटी अक्सर,
किस तरह कटती हैं रातें उस की

दूर रह कर भी सदा रहती है,
मुझ को थामे हुए बाहें उस की!!